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हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टियों में बंटेंगे दलितों के वोट

इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टियों में दलितों के वोट बंटेंगे। इसके कारण है इनेलो-बसपा गठबंधन और जजपा आसपा गठबंधन। इसके अलावा कांग्रेस से कुमारी सैलजा और भाजपा से भी दलित नेता प्रभावी हैं। 

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haryana SC Vote bank

विधानसभा चुनाव में इस बार दलित मतदाताओं की अहम भूमिका रहने वाली है। हरियाणा के जातीय समीकरणों में उलझे चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में दलितों को अपने-अपने पक्ष में करने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी। 

कांग्रेस जहां दलितों को अपना परंपरागत वोट बैंक मानकर चल रही है, वहीं भाजपा को दलित कल्याण की योजनाओं का लाभ मिलने के साथ ही इनेलो-बसपा, जजपा-आसपा गठबंधन और कांग्रेस के बीच बंट रहे दलित मतदाताओं का लाभ मिलने की आस बंधी हुई है। दलित मतों में एकजुटता कांग्रेस के लिए तथा दलित मतदाताओं में बिखराव भाजपा के लिए फायदेमंद माने जा रहे हैं।

 प्रदेश में पांच अक्टूबर को चुनाव हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में 17 अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। राज्य में दलित मतदाताओं की संख्या 20 से 22 प्रतिशत है, जो कि किसी भी राजनीतिक दल की हार जीत में अहम भूमिका निभाने के लिए काफी है। 

हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों का आकलन किया जाए तो दलित मतदाताओं ने कांग्रेस के प्रति अपना भरोसा जताया है। साल 2019 में राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार पांच लोकसभा सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस ने पांच सीटें जीतकर बढ़त बनाई है। 

लोकसभा चुनाव की खास बात यह रही कि कांग्रेस यह कहकर दलितों का भरोसा जीता कि भाजपा संविधान से छेड़छाड़ कर सकती है। भाजपा द्वारा लाख सफाई देने के बावजूद इसका कांग्रेस को फायदा मिला।

 इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा आरंभ से संविधान की रक्षा और आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस पर हमलावर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के तमाम रणनीतिकारों ने पहले दिन से इस बात पर फोकस रखा कि भाजपा संविधान और आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं करेगी। 

दलितों को उनका पूरा हक दिलाएगी। कांग्रेस की ओर से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने लगातार इस बात की आशंका जताई कि भाजपा संविधान विरोधी है और आरक्षण को खत्म करना चाहती है। 

भाजपा ने विदेश यात्रा पर गये राहुल गांधी के उस बयान को कांग्रेस द्वारा आरक्षण खत्म करने के आधार के रूप में लिया, जिसमें राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस आरक्षण खत्म करने के बारे में तब सोचेगी, जब सही समय होगा, जो कि अभी नहीं है।

 भाजपा ने इसे कांग्रेस और राहुल गांधी द्वारा आरक्षण खत्म करने की मंशा के रूप में प्रचारित किया, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सफाई दी कि राहुल गांधी ने विदेश में यह कहा था कि कांग्रेस आरक्षण व्यवस्था को 50 प्रतिशत तक ले जाने के हक में है। जब ऐसा हो जाएगा। 

 उसके बाद आरक्षण की जरूरत नहीं रहेगी। भाजपा अपने चुनाव प्रचार में राहुल गांधी पर आरक्षण खत्म करने की साजिश रचने के आरोप लगा रही है तो कांग्रेस कह रही है कि संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता के हस्ताक्षर भी संविधान पर हैं। 

इसलिए कांग्रेस किसी सूरत में संविधान व आरक्षण के विरुद्ध नहीं हो सकती। इस बार सबसे बड़ा असमंजस दलितों में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा को लेकर भी बना, जिनके कांग्रेस के एक कार्यक्रम में हुए अपमान का मुद्दा भाजपा ने पूरे जोरदार ढंग से उठाया। 

कांग्रेस ने हालांकि सैलजा को मनाने का दावा कर लिया है, लेकिन भाजपा अभी भी सैलजा के प्रति सहानुभूति जताकर दलितों का समर्थन हासिल करने की कोशिश में है।

गठबंधन की राजनीति से बंट रहा दलित वोट बैंक

हरियाणा में दलित इनेलो-बसपा गठबंधन के साथ ही जननायक जनता पार्टी और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के गठबंधन में बंटे हुए हैं। भाजपा व कांग्रेस की जिन दलितों पर निगाह है। 

वही दलित वोट बसपा व आजाद समाज पार्टी के साथ भी सक्रिय है। इनेलो व बसपा गठबंधन को जाटों के साथ दलितों का वोट मिलने की संभावना है तो इसी तरह जजपा व आसपा गठबंधन को भी जाटों के साथ दलितों का साथ मिलने की उम्मीद है। 

ऐसे में यदि दलित वोट बैंक बंटता है तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा, जिसको लेकर भाजपा के रणनीतिकार आशान्वित दिखाई दे रहे हैं।